बिहार (जमुई):- क्रीमी लेयर, भारत में अन्य पिछड़ा वर्ग जो OBC के उन संपन्न और शिक्षित वर्गों को संदर्भित करता है, जो सरकारी योजनाओं के तहत शिक्षा और रोजगार में मिलने वाले आरक्षण जैसे लाभों के पात्र नहीं होते। ये लाभ उन लोगों के लिए होते हैं जो आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े होते हैं।
यह अवधारणा भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने, इंद्रा साहनी मामले सन उन्नीस सौ बानवे में पेश की थी, जिसका उद्देश्य OBC वर्ग के संपन्न सदस्यों को उन लाभों से बाहर रखना था, जो वास्तव में पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए बनाए गए हैं। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि सरकारी लाभ उन लोगों तक पहुंचे जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है, और संपन्न OBC सदस्य इन अवसरों पर एकाधिकार न जमाएं।
ये समझ गये?
अब जानों क्रिमी लेयर की पहचान, तो क्रीमी लेयर की पहचान, जैसे वार्षिक आय, शिक्षा स्तर और रोजगार स्थिति के आधार पर की जाती है। वर्तमान दिशानिर्देशों के अनुसार, जिन परिवारों की वार्षिक आय एक निश्चित सीमा होती है, जैसे वर्तमान में आठ लाख प्रति वर्ष से अधिक है, उन्हें क्रीमी लेयर का हिस्सा माना जाता है, यानी साधारण भाषा में कहा जाय तो वो क्रिमी लेयर में काउंट होगी, और वे आरक्षण के पात्र नहीं होंगे।
यह वर्गीकरण सामाजिक न्याय और समानता के बीच संतुलन बनाने में मदद करता है, ताकि आरक्षण का लाभ वास्तव में पिछड़े वर्गों तक पहुंचे।
0 Comments